उत्तराखंड
शंकराचार्य परिषद के अध्यक्ष स्वामी आनंद स्वरूप ने कहा युवा संतो को शंकराचार्य बनाकर उनका अभिषेक किया जाना चाहिए।
Newsupdatebharat Uttarakhand Haridwar Report Jitendra kori
हरिद्वार – शंकराचार्य परिषद के अध्यक्ष स्वामी आनंद स्वरूप ने अखाड़ा परिषद को लेकर हो रही राड़ पर चिंता जाहिर करते हुए प्रयागराज में हुए परिषद के चुनाव को जायज बताते हुए उम्मीद जताई है कि जल्द ही अखाड़ा परिषद एक हो जाएगा। उन्होंने बैरागी संतो के सहयोग से चुने गए अखाड़ा परिषद के अध्यक्ष रविन्द्र पुरी महाराज से भी प्रयागराज में चुने गए दूसरे अखाड़ा परिषद को समर्थन देने का निवेदन किया और कहा कि वैष्णव में अखाड़े की परंपरा नहीं है। मैं बैरागी अखाड़े का विरोधी नहीं हूं। परिषद में बैरागी को शामिल होने की आवश्यकता नहीं है।
शंकराचार्य परिषद के अध्यक्ष स्वामी आनंद स्वरूप ने शंकराचार्यो की उम्र को लेकर भी सवाल खड़े किए। उन्होंने कहा कि 90 से ऊपर की उम्र के व्यक्ति शंकराचार्य बनकर घूमेगा तो कैसे चलेगा। शंकराचार्य पद की कम से कम और अधिक से अधिक आयु निर्धारित होनी चाहिए। और इसका मठमनाओं में जिक्र किया जाना चाहिए। जिनके पैर कब्र में लटकने वालों हो उन लोगों को रिटायर किया जाना चाहिए। और उनकी जगह पर युवा संतो को शंकराचार्य बनाकर उनका अभिषेक किया जाए। उनका इशारा निश्चलानंद ,स्वरूपानंद और भारती सब की तरफ है, युवा आएगा तो कार्यवाही करेगा, आक्रमण शुरू करेगा। जो शंकराचार्य बनकर घूम रहे है। और साथ ही शंकराचार्य पद पर उत्तराधिकारी घोषित करने की परंपरा बंद होनी चाहिए नहीं तो वह पीठ न्याय नहीं कर पायेगी,
स्वामी आनंद स्वरूप ने हिमालय को हमारा देवालय बताते हए हिमालयी क्षेत्र में तेजी से बढ़ रहे ग़ैरहिन्दू कि संख्या पर चिंता व्यक्त करते हुए गैर हिंदुयों के प्रवेश पर रोक लगाने की मांग को दोहराया है
स्वामी आनंद स्वरूप ने मीडिया से बात करते हुए कहा कि मैं चाहता हूं कि अखाड़ा परिषद जल्दी से जल्दी एक हो जाए लेकिन जो विधिवत चुनी हुई अखाड़ा परिषद है। कल को अगर हरीश रावत बोले कि मैं यहां का मुख्यमंत्री हूं तो कैसे मुख्यमंत्री हो गए, किसने चुना आपको मुख्यमंत्री, जनता का चुनाव तो हुआ ही नहीं। ऐसे ही जो अभी अखाड़ा परिषद हरिद्वार में बनी थी वह आनन-फानन में सिर्फ इसलिए बनी थी कि 25 को जो मीटिंग हो रही है वह ना हो। 25 की मीटिंग संपन्न हुई विधिवत उसका चुनाव हुआ जो अध्यक्ष निरंजनी के चुने गए हैं स्वामी रवींद्र पुरी महाराज वही असली अखाड़ा परिषद के अध्यक्ष है। मैं महानिर्वाणी के रवींद्र पुरी महाराज से भी अपेक्षा और आशा करता हूं कि वह आगे आकर के उसको समर्थन दे। बात वैष्णवो की है, मैं कोई वैष्णवो का विरोधी नहीं हूं, वैष्णव संप्रदाय के लोग हमारे पूज्य हैं लेकिन अखाड़े का कांसेप्ट उसमें नहीं है, वह बिल्कुल नया है इसलिए परिषद में सम्मिलित होने की आवश्यकता वैष्णव को नहीं है।
जो युवा कर पाएगा वह कोई नहीं कर पाएगा और युवा संतो को अभी 10 संतो को हमने सन्यास दिलवाया है 10 संतो को सन्यास दिया है जिसमें से चार को शंकराचार्य बनाएंगे और चार जब शंकराचार्य युवा पीठों पर युवा बैठेगा, जो विद्वान होगा निष्क्रिय होगा, भोग विलास में लिप्त नहीं होगा, 45 साल से कम होगी तो वह कार्य करेगा। और जिसकी उम्र 90 वर्ष से ऊपर है वह शंकराचार्य बनकर घूमेगा तो कैसे होगा, अखाड़ा परिषद की जो वर्तमान स्थिति है वह इसलिए है कि अखाड़ा का मतलब होता है कि शैव संप्रदाय जो संकरी परंपरा के मानने वाले दशनामी लोग हैं उनको हम बोलते हैं, अखाड़ा जो धर्म योद्धा हैं हमारे और उनसे सात समूह में बैठे हुए लोग हैं, 7 अखाड़ों में बैठे हुए लोग हैं उन से बनने वाली परिषद ही केवल अखाड़ा परिषद है, ठीक है अच्छा है कि कुछ सालों से वैष्णव संप्रदाय भी उस में सम्मिलित होता आ रहा है वैष्णो का आज भी कोई अखाड़ों का स्वरूप नहीं है कोई कार्यालय नहीं है कोई दीक्षा नहीं है कोई शिक्षा नहीं है उनके यहां जो व्यवस्था है वह बहुत नई है उस नई व्यवस्था में को लेकर के चलने वाला अखाड़ा परिषद नहीं हो सकता है।
आनंद स्वामी आनंद स्वरूप का कहना है कि वही मैं मांग कर रहा हूं कि अगर शंकराचार्य पद है तो उसकी मिनिमम और मैक्सिमम आयु निर्धारित होनी चाहिए अगर मठामनाओं जिगर नहीं है तो उसका जिक्र फिर से कुछ संशोधन करके कर दिया जाए शंकराचार्य परिषद का जो गठन हुआ वह इसीलिए हुआ कि धर्म की जो सत्ता है शैवों की जो संस्था है मतलब अखाड़ा और और शंकराचार्य पीठों में चार शंकराचार्य पीठों में नौजवान शंकराचार्य बनाए जाए उनकी आयु निर्धारित की जाए ताकि कब्र में पैर लटकाए हुए शंकराचार्य है उनको रिटायर करके नए युवा सन्यासियों को शंकराचार्य पद पर पदस्थ किया जाए और उनका अभिषेक किया जाए। मेरा इशारा सबकी तरफ है अब निश्चलानंद महाराज की आयु भी पूरी हो गई है हमारे स्वरूपानंद महाराज की आयु भी पूरी हो गई है और भी जितने शंकराचार्य बनके लोग घूम रहे हैं उनको भी उससे, क्योंकि जब युवा आएगा तो कार्रवाई करना शुरू करेगा युवा सन्यासी आएगा तो उनके ऊपर आक्रमण शुरू करेगा इसलिए युवा सन्यासियों को चारों पीठों पर श्रृंगेरी में हमारे भारती ऐसे ही ज्योतिष पीठ पर नया शंकराचार्य बने द्वारका पीठ पर शंकराचार्य नया बने पूरी पीठ पर शंकराचार्य नया बने, अब यहां उत्तराधिकारी घोषित न करने की जो कांसेप्ट है वह गलत है और दूसरा कोई शंकराचार्य अपने उत्तराधिकारी को शंकराचार्य ना बनाएं। नहीं तो वह भी न्याय नहीं कर पाएगी इसलिए कि क्योंकि यह धर्म की सत्ता ले आना है। चयन की प्रक्रिया मठामनाये में स्पष्ट लिखी हुई है कि तीन शंकराचार्य मिलकर चार शंकराचार्य का प्रस्ताव रखेंगे और काशी विद्युत परिषद उस पर अनुमोदन करेगी कि यह उसके लायक है कि नहीं, प्रशिक्षण करेगी उनका परीक्षण करेगी, परीक्षण की पूरी विधि है इस विधि का जो निर्धारण उसी तरह से किया जाए। अभी सुप्रीम कोर्ट ने जो आदेश स्वरूपानंद और वासुदेवानंद के मामले में दिया है वही प्रक्रिया है और वही प्रक्रिया ठीक से अपनाई जाए और नौजवानों को युवाओं को शंकराचार्य बनाया जाए।
स्वामी आनंद स्वरूप का कहना है कि दो-तीन महीना पहले अभी यह अभियान चलाया है कि जिस प्रकार से हिमालय में गैर हिंदुओं का अतिक्रमण बढ़ता जा रहा है बलात कब्जा होता जा रहा है 1700 घोस्ट विलेज हो गए हैं हिंदुओं के जिसमें एक भी हिंदू नहीं है ऐसे समय में जब हिमालय हमारा देवालय है हमारा पूजा स्थली है हमारी, साधना स्थली है, ऐसे समय में मुसलमानों का बढ़ना उचित नहीं है, जिस प्रकार से 1915 में मदन मोहन मालवीय ने यह मांग की थी कि और जिसे अंग्रेजी सरकार ने स्वीकार किया था और आज भी चल रही है कि हरिद्वार में गैर हिंदुओं का प्रवेश वर्जित हो ऋषिकेश में प्रवेश वर्जित हो इसको विस्तारित करते हुए पूरे हिमालय क्षेत्र में गैर हिंदुओं का प्रवेश तत्काल वर्जित किया जाए मैंने मुख्यमंत्री से मांग की थी मुख्यमंत्री ने एक कमेटी बनाई है लेकिन अभी वह सब बड़ा गोलमोल है अगर हमारी मांग स्वीकार नहीं होती है तो आने वाले चुनाव में इसका परिणाम भारतीय जनता पार्टी को भुगतना पड़ेगा और मैं खोलूंगा पोल कि यह यदि जो स्वीकार किया आपने कि हम उस ऑर्डिनेंस को लाएंगे और ऑर्डिनेंस नहीं लाएंगे तो हम भी उसका प्रतिरोध करेंगे और विरोध करेंगे, चुनाव में जितना हो सकता है आप को हराने का प्रयास करेंगे।