उत्तराखंड
देश का मजदूर इस वक्त मजबूर भुखमरी की कगार पर मजदूर
देश का मजदूर इस वक्त मजबूर भुखमरी की कगार पर मजदूर
राहुल सिंह दरम्वाल
उत्तराखण्ड – इस वक्त लॉक डाउन के कारण पूरे देश के साथ ही उत्तराखंड में भी मजदूर मजबूर दिखाई दे रहा है चारों तरफ किसी ना किसी कारण से इस वक्त मध्यवर्ग और मजदूर वर्ग दोनों को दिक्कतों का सामना करना पड़ रहा है क्योंकि अधिकतर लोग और परिवार अपनी हर रोज दिनचर्या अपने हर रोज के हिसाब से जिया करते थे क्योंकि अधिकतर परिवार हर रोज घर से अपने परिवार के लिए दो वक्त की रोटी के लिए घर से निकलते थे और शाम को अपने घर पहुंचते थे जिस वजह से लॉक डाउन में उन्हें खासी दिक्कतों का सामना करना पड़ा क्योंकि ना तो रोजगार है और ना ही खाने के लिए रोटी ।
कोरोना से मौत का डर नही है अब डर है तो भूख, प्यास से मरने का, रहने को छत ना हो, सोने को बिस्तर ना हो तो कोई बात नही, लेकिन दरकार रोटी की है, 1-1 माह के दुधमुहे बच्चे हैं जिनकी भूख केवल दूध से ही मिटेगी लेकिन दूध लॉक डाउन में कब, कैसे कहाँ से मिलेेगा पता नही, देश के श्रमिकों का इस वक्त यही हाल है ।
लेकिन जबाब नही, ना काम मिलेगा और ना ही पैसा, बस सोचते हैं अपने घर चले जायें लेकिन यह सोच भी सपना बनकर रह गयी है, पैदल घर जाने की कोशिश की लेकिन जगह- जगह से पुलिस ने लौटा दिया, जब से लॉक डाउन हुआ प्रशासन से केवल कभी कभी कच्चा राशन बांटा , हालांकि बीच बीच में स्वयं सेवी संस्थाओं ने तैयार खाने के पैकेट इन लोगों तक पहुंचाए जो नाकाफी थे। लेकिन भूख है साहब, 2 जून की रोटी चाहिये, कोई हमे मदद कर घर भेज दे….. ये गुहार लगाते है मजदूर ।
उत्तराखंड में सरकार के राजस्व का मुख्य स्रोत उत्तराखंड की नदियां ही है जिन नदियों में सरकार खनन कार्य करवाकर राजस्व प्राप्त करती है इन नदियों में उत्तर प्रदेश बिहार और अन्य राज्यों से मजदूर यहां पहुंचकर इन नदियों में खनन कार्य करके अपनी दिनचर्या और अपने परिवार की भूख मिटाता है लेकिन इस वर्ष मजदूर अपने घरों गांव में होली बनाकर निकले तो उनकी आंखों में एक सपना था एक उम्मीद थी लेकिन मार्च महीने से ही लॉक डाउन की शुरुआत हुई और मजदूरों के सपने आंसुओं में बहने लगे लगातार लॉक डाउन के चलते मजदूर वर्ग सपने तो छोड़ो अपने परिवार को दो वक्त की रोटी भी नहीं दे पाया ।
खाने के संकट के चलते इन लोगों ने स्थानीय जनप्रतिनिधियों का दरवाजा खटखटाया तो कुछ मदद मिली लेकिन उससे कहाँ कुछ पूरा होने वाला था, अब सवाल एक ही है की क्या प्रशासन इन गरीब मजदूरों को इस संकट की घड़ी में इनके घर पहुंचाने के लिये कोई कदम उठाएगा ,या धरती का सीना चीर हाड़तोड़ मेहनत करने वाले मजदूर यूँ ही हाथ जोड़कर प्रशासन और सरकार से गुहार लगाते रहेंगे ।