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उत्तराखंड

पहले भी भाजपा से बगावत कर चुके हैं हरक सिंह रावत, राजनीतिक जीवन में कई दलों का दामन पकड़ा और छोड़ा।

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श्रीनगर गढ़वाल  –   प्रदेश की सियासत में खलबली मचा देने वाले डा. हरक सिंह रावत का राजनीतिक जीवन बगावती तेवरों से भरा रहा है। अपने राजनीतिक करियर में रावत ने कई दलों का दामन थामा और छोड़ा। इस दौरान उन्हें अपने राजनीतिक जीवन में कई बार उतार चढ़ाव देखने को मिले। डा. रावत अपने राजनीतिक जीवन के करीब 35 वर्षों में किसी भी मुख्यमंत्री के दबाब में नहीं रहे।
गढ़वाल विश्वविद्यालय श्रीनगर से अपनी राजनीति शुरू करने वाले हरक सिंह ने अपने राजनीति करियर की शुरूवात भाजपा से ही की है, पौडी जिले के गहड़ गांव के मूल निवासी हरक सिंह अभिवाजित उत्तर प्रदेश के दौरान 1988 में भाजपा के पौडी जिलाध्यक्ष रहे। वे राम जन्म भूमि आंदोलन में भाजपा नेताओं तीरथ सिंह रावत, धन सिंह रावत, ध्यानी के साथ 39 दिनों तक जेल में भी रहे। 1889 में पहली बार हरक सिंह रावत ने कमल के निशान पर पौडी विधानसभा से चुनाव लड़ा लेकिन उन्हें विजय प्राप्त नहीं हुई और उस समय जनता दल के प्रत्याशी नरेन्द्र सिंह भंडारी से वे हार गये। उत्तरप्रदेश में राजनीतिक हालातों के ठीक न होने के चलते यह सरकार ज्यादा नहीं चल सकी। 1991 में फिर से चुनाव हुए। इस समय हरक सिंह रावत राम लहर के चलते विधानसभा का चुनाव रिकार्ड 41 हजार मतों से जीत गये। लेकिन बाबरी मस्जिद विध्वंस मामले से उपजे विवाद के बाद उत्तर प्रदेश की यह भाजपा सरकार भी अधिक दिन नहीं चल पायी। उत्तर प्रदेश में फिर 1993 में चुनाव हुए। इस चुनाव में भाजपा ने पौडी विधानसभा से हरक सिंह की बजाय आरएसएसएस के खास माने जाने वाले मोहन सिंह रावत गांववासी को अपना प्रत्याशी बनाया। गांववासी को टिकट देने से गुस्सायें हरक सिंह के बगावती तेवरों को देखते हुए भाजपा हाईकमान को झुकना पड़ा और फिर से हरक सिंह रावत को टिकट दिया गया।
 लेकिन भाजपा व हरक सिंह के सुर ज्यादा दिन नहीं मिले इसके बाद हरक सिंह रावत ने 1996 में उत्तराखंड जनता संघर्ष मोर्चा नाम से एक क्षेत्रीय दल का गठन किया लेकिन वह मोर्चा भी ज्यादा नहीं चल पाया। इसके बाद हरक सिंह रावत ने जनता दल का दामन थामा और भाजपा के खिलाफ चुनाव लड़ा। इस चुनाव में वे भाजपा नेता गांववासी से चुनाव हार गये लेकिन जल्द ही हरक सिंह रावत ने जनता दल छोडकर, बसपा का दामन पकड़ा व भुवन चंद्र खंडूडी के खिलाफ लोक सभा का चुनाव लड़ा।
 मायावती शासन काल में हरक सिंह रावत उत्तर प्रदेश खादी बोर्ड के अध्यक्ष रहे लेकिन मायावती का साथ भी हरक सिंह को अधिक समय तक पंसद नहीं आया और उत्तरखंड राज्य निर्माण के  बाद रावत कांग्रेस में शामिल हो गये व लेन्सडाउन से चुनाव जीते। प्रदेश में मुख्यमंत्री कोई भी रहा हो हरक सिंह हमेशा अपनी दबंग कार्यशैली के लिए चर्चाओं में रहेे है। कांग्रेस सरकार प्रदेश के कृषि मंत्री रहते हुए भी वे अपनी दबंगता के लिए जाने जाते रहे। कृषि विभाग में नियुक्तियों का मामला हो या विदेश यात्रा या फिर मंडी परिषद में अपने करीबियों को अध्यक्ष बनाने का मामला रहा हो हरक सिंह ने हमेशा अपने तेवर तल्ख रखें। उत्तराखंड में हरीश रावत की सरकार गिराने के बाद हरक ने भाजपा का दामन थाम। भाजपा ज्वाइन करने के बाद से वे कई बार अपने बयानों से भाजपा सरकार को असहज करते रहे अब पुनः हरक सिंह रावतों अपने बगावती तेवरों के चलते चर्चा का विषय बने हुए हैं।
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